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पाकिस्तान: पी. डी. एम के जन आंदोलन के माध्यम से नवाज शरीफ का अंतिम दांव

वर्तमान पाकिस्तान में पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट ( पी.डी.एम.) को वहां की जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है। सरकार के पी.डी.एम. समर्थकों और उसके नेताओं को रोकने के हरसंभव हथकंडे अपनाने के बावजूद उसकी रैलियों में उमड़ रही लाखों की तादाद को रोकने में नाकामयाब साबित हो रही है।

पी.डी.एम. ग्यारह विपक्षी दलों का एक गठबंधन है, जिसमें पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पी.एम.एल.) का नवाज गुट, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.)और जमीयत उलेमा इस्लाम (जे.यू.आई.) का फजल गुट प्रमुख है।

इस गठबंधन द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से इमरान खान सरकार का विरोध करने और उसके इस्तीफे की मांग कर के नए सिरे से निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए 6-सूत्रीय कार्य योजना तैयार की गई है। इसके तहत अक्तूबर में अलग-अलग स्थानों पर संयुक्त रैलियों के साथ, दिसंबर में विशाल सार्वजनिक प्रदर्शन और अगले साल जनवरी में इस्लामाबाद की ओर भारी जन समुदाय के साथ एक पैदल यात्रा प्रस्तावित है।

पी.डी.एम. द्वारा इमरान सरकार पर लगाए गए कई आरोपों में से एक बड़ा आरोप यह है कि इमरान खान सरकार को चुनावों में धांधली करके, चुनाव पश्चात छोटे दलों तथा निर्दलीयों पर समर्थन का दबाव बना सत्ता में बैठाया गया है।

पी.डी.एम. इमरान सरकार को पाकिस्तान में आर्थिक कुप्रबंधन, बेरोजगारी, महंगाई व निराशाजनक कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए जिम्मेदार मानती है। इस आंदोलन की आड़ में विपक्ष राज्यों में उनकी पार्टी की सरकारों को सुरक्षित करना चाहती है।

सिंध राज्य में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार लगातार केंद्र के सरकार के निशाने पर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज, पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो, मौलवी फजलुर्रहमान इस आंदोलन का जमीनी नेतृत्व कर रहे हैं तो विगत दिनों इस आंदोलन की रैली में सीधे प्रसारित हुए लंदन में बैठे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के तल्ख भाषण ने बेहद रोचक बना दिया है। उन्होंने इस आंदोलन का पूरा रुख़ ही उस ओर मोड़ दिया जो पाकिस्तान की राजनीति में अभी तक कभी देखने को नहीं मिला।

इसके पिछले महीने गठित होने के बाद से ही सबसे महत्वपूर्ण यह उभर कर आ रहा है कि इस आंदोलन में देश के प्रमुख विपक्षी दल उनके समर्थकों समेत पाकिस्तान की सेना से टकराव की स्थिति में आ गये हैं, जिसका श्रेय भी नवाज शरीफ को ही जाता है।

सेना द्वारा उसे राजनीति में नहीं घसीटने की चेतावनी के बावजूद, इन दलों ने सार्वजनिक रूप से इसकी राजनीतिक भूमिका के बारे में शिकायत की है। अब, ये विपक्षी दल सेना के जनरलों से देश की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए कह रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बयान ने आग में घी का काम किया और वर्तमान स्थितियों को खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया।

गौरतलब है कि नवाज शरीफ की चुनी हुई सरकार को भंग करके हुए चुनावों के बाद इमरान प्रधानमंत्री बने थे। शरीफ वर्तमान में कई भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों का सामना कर रहे हैं और उनसे बचने के लिए एक तरह से भगोड़े की तरह लंदन में शरण लिए हुए हैं।

शरीफ़ ने पी.डी.एम. की गुजरांवाला में हुई रैली को ‘वीडियो कॉल’ माध्यम से संबोधित करते हुए पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवां और आई.एस.आई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद का नाम लेते हुए आरोप लगाते है कि वे “सरकार के ऊपर सरकार” और देश में "सत्ता के दो केंद्र” बनाने के लिए फौज का इस्तेमाल कर रहे हैं।

नवाज शरीफ ने उन पर खुले तौर पर कई आरोप भी लगाएं जिसमें एक चुने हुए प्रधानमंत्री ( स्वयं नवाज) को साजिश के तहत अपदस्थ करने जैसे देशद्रोह का आरोप भी है। शरीफ ने पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक दुर्दशा, बेरोज़गारी व भुखमरी के लिए भी इन्हीं जनरलों को कसूरवार ठहराया है। यही नहीं, बांग्लादेश के उदय और भारत से मिली कारगिल युद्ध की हार के लिए भी पूर्ववर्ती सेनाध्यक्षों को जिम्मेदार बता पाक सेना की दुखती रग पर हाथ रख देते है।

पाकिस्तान में सेना के खिलाफ दबे स्वर में, बंद कमरों में आरोप तो पहले भी लगते रहे है, परंतु पदस्थ उच्च अधिकारियों पर इस तरफ से तीन मर्तबा प्रधानमंत्री रह चुके व्यक्ति का सार्वजनिक तौर पर खुले मंच से हजारों की भीड़ में पदस्थ फौजी जनरलो पर गरजना पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति को एक विकट मोड पर ले आया है। इसके मायने पाकिस्तान सेना के लिए और भी ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि पाकिस्तान इतिहास में पहली बार किसी बड़े पंजाबी राजनेता ने सेना पर ऐसे आरोप लगाए हैं।

गौरतलब है कि नवाज पंजाब से आते हैं, जहां के लोग और उनके राजनेता सदैव सेना के पक्षधर रहे हैं और उसके दबदबे को स्वीकार करते आए हैं। पाकिस्तान की सेना में भी अधिकतर पंजाब मूल के लोग हैं उस पर सिंध व बलोचिस्तान के नेता पाकिस्तानी नहीं बल्कि पंजाब परस्त पंजाबी सेना होने के संगीन आरोप लगाते आए हैं।

नवाज अपने भाषण में यहीं तक नहीं रुकते और सेना के खिलाफ बगावत को और आगे ले जाते हुए फातिमा जिन्ना से लेकर शेख मूजीबुर्रहमान, अब्दुल गफार खान, वली खान, महमूद खान अचकजई, मेंगल और मरी सरदारों पर हुए अत्याचारों और अकबर बुगती, बेनज़ीर भुट्टो की हत्याओं का इल्जाम लगा खुद को उन जैसे बागियों में शुमार कर फौज को खुली चुनौती दे डालते हैं।
नवाज यह भी भांप चुके हैं कि सेना वर्तमान इमरान सरकार की आड़ में मुख्य विपक्षी दलों के नेताओ और पार्टियों को...

नवाज शरीफ ने बेहद खतरनाक व आत्मघाती सा कदम उठाकर पाकिस्तानी फौज को खुली चुनौती दे डाली है - फोटो : social media
आखिरकार नवाज ऐसा क्यों कर रहे हैं यह जानना भी बेहद जरूरी है। कहा जाता है कि जीतने के लिए, अपने प्रतिद्वंद्वी की ताकत और कमजोरियों को जानकार होना महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान की आज की राजनीति में कोई भी नवाज शरीफ से बेहतर पाकिस्तानी की सैन्य व्यवस्था को नहीं जानता है।

वह एक मात्र ऐसे बड़े नेता भी है जो पिछले चार दशक से सक्रिय है व उच्च पदों पर रहे हैं। वह स्वयं भी सेना की राजनीतिक हस्तक्षेप प्रणाली का ही एक उत्पाद है। वह जानते है कि यह प्रणाली किस तरह काम करती है और इस बात से भी भली-भांति परिचित है कि पाक फौज कैसे राजनेताओं को स्थापित करती है और कैसे खत्म भी करती है।

नवाज यह भी भांप चुके हैं कि सेना वर्तमान इमरान सरकार की आड़ में मुख्य विपक्षी दलों के नेताओ और पार्टियों को बिलकुल हाशिए पर या खत्म करके पाकिस्तान के अगले दस सालों में सैन्य पसंद नेताओं, सेवानिवृत्त फौजी अधिकारियों को राजनीति में उभार कर हमेशा के लिए लोकतंत्र की आड़ में पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होना चाहती है।

यही कारण है कि नवाज शरीफ ने बेहद खतरनाक व आत्मघाती सा कदम उठाकर पाकिस्तानी फौज को खुली चुनौती दे डाली है जो उनके लिए अंतिम विकल्प भी नजर आ रहा है। पाकिस्तानी फौज और उसके उच्च अधिकारियों के लिये पंजाब क्षेत्र से जहां पी.एम.एल. की बेहद मजबूत पकड़ है और उसके कौर वोटर जिनके परिवारों के लोग फौज में अधिसंख्य है के बगावती सुर बेहद परेशान करने वाले हैं और यही वे लोग भी है जिनके सहारे नवाज शरीफ अपनी वापसी की उम्मीद भी लगाए बैठे हैं।

एक तरफ जहां नवाज शरीफ अपने भाषणो में अपनी लड़ाई इमरान खान से नहीं बल्कि फौजी जनरलों से जो इमरान खान को कठपुतली प्रधानमंत्री बना पाकिस्तान पर थोपने आरोप लगा इसमें एक अलग रोचक दाव खेल रहे हैं तो दूसरी तरफ फौज का पूर्ण समर्थन प्राप्त इमरान खान जवाबी व्यक्तव्यो में जनरलों की खुली पैरवी कर नवाज शरीफ को जल्द से जल्द पाकिस्तान लाकर उन पर कड़ी कानूनी कार्यवाही करने की घोषणा कर अपने फौज परस्त तमगे को चमकाने में लगे हैं।

हालांकि इस आर-पार की लड़ाई में नवाज शरीफ बेहद कमजोर है। वर्तमान में वह पाकिस्तान के कानूनी रूप से एक वांछित भगोड़े भी हैं। वास्तव में यह सभी मानकों में एक असमान क्षमता वालों की लड़ाई है। परंतु नवाज भी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्होंने टकराव का यह रास्ता कुछ कारणों से चुना है जो जोखिमों के बावजूद उन्हें आगे बढ़ाता है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, उन्होंने कई कारकों को तौला है। उन्होंने सभी विकल्पों और अनुमानित प्रतिक्रियाओं की गणना की है जो उनके इस सिस्टम के गहन ज्ञान पर आधारित हैं। सेना के खुलकर किसी राजनीतिक घटनाक्रम व राजनेता पर टिका टिप्पणी करने की सीमा और बंदिश के कारण शब्दों की लड़ाई व जनता में अपने पक्ष में माहौल बनाने में तो नवाज जीतते दिख रहे हैं।

रैलियों के माध्यम से नवाज अपने भाषणों को तोपखाने की बमबारी के रूप में इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। निहसंदेह पाकिस्तानी फौज के खिलाफ पहली पंजाबी सियासी बगावत से फौज में एक बार भूचाल सा आ गया है जिसकी प्रतिक्रिया में नवाज पर लगने वाले निशाने भी तय हैं। उनके परिवार, नेताओ, कार्यकर्ताओं पर तयशुदा तौर पर लगने वाले केस और गिरफ्तारियों से बचना अब उनके लिए नामुमकिन सा है।

चूंकि पंजाब को पाकिस्तान फौज का गढ़ भी माना जाता है तो निस्संदेह अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उनकी पार्टी को तोड़ने के प्रयास भी अवश्यम्भावी से लग रहे हैं। गत दिवस नवाज के दामाद और मरियम नवाज के पति महमूद सफदर की सिंध राज्य के कराची शहर हुई एक जनसभा के बाद अलसुबह उनके होटल कमरे के दरवाजे को तोड़ कर हुई गिरफ्तारी भी यही संकेत करते हैं।

गौरतलब है सिंध में पी.डी.एम के घटक पी.पी.पी की सरकार है, पर इसके बावजूद आर्मी के अधिकारियों की शह पर सिंध पुलिस के आई.जी पुलिस अगवा किया गया तथा दबाव बना गिरफ्तारी आदेश जारी करवाए गए। यह उन खतरों की बानगी भर है जो नवाज शरीफ और पी.डी.एम नेताओ के लिए घातक साबित हो सकते हैं।

नवाज़ शरीफ का यह कदम उन्हें पाकिस्तान से हमेशा के लिए निर्वासित नेताओ की श्रेणी में भी ला छोड़ सकता है। निस्संदेह उन्होंने पाकिस्तान की जनता विशेषकर पंजाब के लोगों की सहानुभूति के सहारे पाकिस्तान की राजनीति में अपना अंतिम दांव खेल दिया है, जिसने एक बार के लिए पाकिस्तानी जनरलों को “बैकफूट” पर धकेल दिया और जनसमर्थन प्राप्त पी.डी.एम भी इमरान सरकार के खिलाफ विरोधी लहर बनाने में कारगर प्रतीत होता दिख रहा है पर इन सबके बावजूद नवाज के इस फौज विरोधी रुख से उनके लिए वापसी बेहद मुश्किल होने वाली है।

आने वाला समय पाकिस्तान व खासकर उसके पंजाब क्षेत्र की राजनीति के लिए बेहद रोचक होने वाला है। वर्तमान में घटित हो रहा यह घटनाक्रम पाकिस्तान की राजनीति व उसके लोकतंत्र का भविष्य भी तय करेगा।