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मज़बूत सैन्य नीति ही चीन के दुस्साहस का विकल्प – आज़ाद सिंह राठौड़

भारत और चीन लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं, जिसमें वास्तविक नियंत्रित रेखा भी शामिल है। यह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ व चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश व उतराखंड से होकर गुजरती है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक लम्बे समय से चला आ रहा है।

 वर्तमान गलवान घाटी में चीन द्वारा किया गया दुस्साहस और हिंसक झड़प भी उसी चले आ रहे विवाद के कारण ही हुई। दशकों बाद हुई इस तरह की घटना ने हमें झकझोर कर रख दिया है और अब वक्त आ गया है कि चीन का हमारी सीमा पर  “डॉमिनेटिंग पॉशचर” या लगातार हम पर दबाव बनाये रखने की नीति का जवाब उसे उसी की भाषा में दिया जाये।

हमारी सबसे बड़ी ताक़त विश्व की सबसे बड़ी धरातल पर लड़ने की क्षमता रखने वाली वाली हमारी फ़ौज है। हमारी फ़ौज की माउंटेन वारफ़ेर यानी पहाड़ी इलाक़ों में लड़ने की बेहतरीन क्षमता पूरे विश्व के समक्ष एक नज़ीर है व सबसे बेहतरीन है। कारगिल युद्ध में हमारी फ़ौज ने दुर्गम परिस्थितियों में इसे साबित भी किया है।

 इसी कारण चीन पर नकेल कसने को जुलाई 2013 में, तत्कालीन यूपीए सरकार के कैबिनेट समिति, जिसे चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी ने पहले ही मंजूरी दे दी थी, एक माउंटेन स्ट्राइक कोर का निर्माण करने का प्रस्ताव पारित किया था। जिसके तहत अगले 7 वर्षों में लगभग 90 हज़ार क्षमता वाली इस कोर को तैयार कर चीन से लगती सीमा पर तैनात किया जाना था। इसके तहत 64,678 करोड़ रुपये मंजूर भी किए गए थे। इस कोर को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य चीनी गतिविधियों पर नजर, किसी भी घुसपैठ पर त्वरित कार्यवाही व युद्ध के लिये तैयार रहने जैसी संरचनाएँ विकसित करना ही था।

चीन की संख्यात्मक रूप से लड़ाकू विमान व मिसाइल क्षमता हम से अधिक है, परंतु यहाँ गौर करने लायक़ यह भी है कि यह क्षमता किसी भी पूर्ण रूप से होने वाले युद्ध में ही कारगर है जिसकी वर्तमान बदलती वैश्विक परिस्थितियों व भविष्य में गुंजाइश काफ़ी कम है या ना के बराबर है। आज चीन से पहाड़ों में एक सीमित परंतु लगातार होने झड़प की संभावना कहीं अधिक है क्योंकि सीमा अनियंत्रित है। जिसका फ़ायदा उठा चीन यदाकदा हम पर दबाव बनाने का प्रयास करता रहता है। चीन के इस ख़तरे से बचने के लिये हमें हमारी सबसे बड़ी ताक़त व चीन की कमजोरी, धरातल पर लड़ने वाली फ़ौज को सही रूप में व बड़ी संख्या में तैनात कर उसके “डॉमिनेटिंग पॉशचर” का जवाब देना चाहिये। गौरतलब है कि चीन ने पिछले एक दशक में अपनी “आन ग्राउंड कॉम्बैट” क्षमता को काफ़ी कम, लगभग आधा कर दिया है। उसने इसे अपनी इलेक्ट्रॉनिक, सूचना और अंतरिक्ष युद्ध में लड़ने की क्षमताओं को प्राथमिकता देने के दबाव में किया है जो उसे पूर्ण रूप से  होने वाले युद्ध में तो फ़ायदा देगी परंतु धरातल पर सीमित झड़पो में उसे पीछे भी धकेलती है। 

माउंटेन स्ट्राइक कोर जिसे एम॰एस॰सी॰ या ब्रह्मास्त्र कोर के नाम से भी जाना जाता है के पूरे तौर पर घटित हो उसकी तैनाती हमें चीन से लगती सीमा पर उसके ऐसे किसी दुस्साहस व एकाधिकार रखने के रवैये को बड़ी चुनौती देगी और हमारी फ़ौज का मनोबल भी ऊँचा रखेगी। इस कोर का एक बड़ा उद्देश्य आक्रामकता बनाये रखना भी है। इसके पूरे तरह से प्रभावी हो जाने से यह अपने मुख्यालय पानगढ़ ( पश्चिम बंगाल) से पूर्व क्षेत्र तक ही सीमित नहीं बल्कि, उत्तर क्षेत्र के लद्दाख इलाक़े में भी यह एक दोहरी भूमिका में होती। इसका तय शेड्यूल के अनुसार पूरा जाना, चीन के नापाक इरादों में प्रभावी बाधा हो सकता था। साथ साथ ही यह पाकिस्तान की तरफ़ दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र वाले हिस्सों में नियंत्रण रेखा ( लाइन ओफ़ कंट्रोल ) पर भी बेहद कारगर हथियार सिद्ध होगी। परंतु ब्रह्मास्त्र कोर जो हमारे लिये वाक़ई ब्रह्मास्त्र साबित हो सकती है को पूर्ण रूप से तैयार कर तैनात करने पर काफ़ी कम कार्य हुआ है या कहें कि वर्तमान सरकार ने इस आधि अधूरी बनी माउंटेन स्ट्राइक कोर को पूर्ण करने की योजना को ठंडे बस्ते में ही डाल सा दिया है। जिसका नतीजा इसकी दूसरी डिविज़न जो उत्तर क्षेत्र में स्थापित होने वाली थी अभी भी पूरी तरह से नहीं हो पायी है। पर्याप्त बजट का अभाव भी इसे पूरी तरह से स्थापित करने में बड़ी बाधा बन रहा है। एम॰एस॰सी॰ के लिये दुर्गम स्थानो पर आवागमन व ऑपरेशन में सहयोग के लिये चिन्हित 70 के लगभग सड़कों में एक तिहाई भी पूरी नहीं हो पायी है। वर्तमान सरकार को तुरंत इस प्रस्तावित कोर को पूरी तरह से तैयार करने के प्रयास कर योजनाबद्ध तरीक़े से इसकी तैनाती शुरू करनी चाहिए।

अब वह वक्त भी आ गया है कि हम चीन को भारत की अखंडता व संप्रभुता के लिये सबसे बड़ा ख़तरा, या यूँ कहें कि चीन के पाकिस्तान में बहुत ज़्यादा बड़े निवेश होने जाने के बाद दोनों को एक संयुक्त ख़तरा मान हमारी सेना का आधुनिकीकरण कर नवीन युद्ध कोशल जिसे अंकन्वेन्शनल वारफ़ेर भी कहा जाता है में पारंगत करना ही होगा। इसमें ‘वायु रक्षा कमान’ जो कि भारतीय सशस्त्र बलों की एक प्रस्तावित एकीकृत त्रि-सेवा कमान है अपनी बड़ी भूमिका अदा कर सकती है। साथ ही साथ हमें मिसाइल प्रोद्योगिकी जिसमें चीन से पीछे तो है पर बहुत ज़्यादा भी पिछड़े नहीं है को तेज़ी से विकसित करना होगा।

पुनःश्च :  चीन को आर्थिक चोट पहुँचाकर उसकी सैन्य दुस्साहस को कम कर देने की बात को भी हमें यूँ समझना होगा कि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार चीन के कुल निर्यात का लगभग तीन प्रतिशत मात्र ही भारत आयात करता है। आयात बंद कर देने पर भी चीन को इतना बड़ा नुक़सान हो कि वह सीमा व वास्तविक नियंत्रण रेखा से किसी तरह की छेड़ छाड़ बंद कर दे तो वह क़तई मुमकिन नहीं है। ड्रैगन की नकेल कसने के लिये मज़बूत सैन्य नीति ही एकमात्र उपाय है।

केंद्र सरकार को बिना देरी किए इस ओर ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि लंबे समय से चले आ रहे चीन के आक्रामक रुख का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।

      – आजाद सिंह राठौड़

( विदेश व सामरिक मामलों के जानकार और कारगिल युद्ध पर आधारित चर्चित पुस्तक ‘ कारगिल : द हाइट ऑफ ब्रेवरी ‘ के लेखक)