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कोविड काल में दोहरी मार झेल रहा है बलोचिस्तान – आजाद सिंह राठौड़

आज जहाँ पूरा विश्व कोरोना महामारी से लड़ रहा है तो वहीं पाकिस्तान के अनाधिकृत क़ब्ज़े में रह रहे बलोचिस्तान के लोगों को इस आपदा से लड़ने के साथ साथ सरकार के दमन से भी जूझना पड़ रहा है।

पिछले महीने बलोचिस्तान प्रांत में विद्रोहियों से अलग-अलग मुठभेड़ और हमलों में पाकिस्तान के एक अधिकारी समेत सात सैनिकों की मौत हो गई। विद्रोहियों के इन हमलों को लॉकडाउन के दौरान इस क्षेत्र में पाकिस्तान सेना के ऑपरेशन “रद्द-उल-फसाद” के तहत सैन्य अभियानों में हुई वृद्धि की प्रतिक्रिया बताया जा रहा है। पाकिस्तान के इन सैन्य अभियानों में अकेले अप्रैल के महीने में 16 बलोच लोगों की हत्या कर दी गयी है, जिसमें अधिकतर राजनीतिक कार्यकर्ता थे। 300 से अधिक स्थानीय बलोच लोगों का अपहरण कर लिया गया, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। हाल ही में हुई यह घटनाएं इस ओर साफ़ तौर पर इंगित करती है साथ ही पाकिस्तान सरकार के उन दाँवों को भी झुठलाती है कि बलोचिस्तान में हालात बिलकुल सामान्य हैं।

कई राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान सरकार पर आरोप लगाए है कि कोरोना महामरी के इस काल में पाकिस्तानी फ़ौज और एजेंसियां मानवाधिकार उल्लंघन के मामलें निरंतर बढ़ा रही है और इससे जुड़ी घटनाओं को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ जा रही है। पृथक बलूचिस्तान की माँग कर रहे संगठन बलोचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के नेता, अल्लाह नज़र ने भी आरोप लगाते हुए कहा है कि पाकिस्तान सेना बलोचिस्तान पर अपने कब्जे और वहाँ के लोगों के संघर्ष का गला घोंटने के लिए कोविड-19 प्रकोप का इस्तेमाल कर रही है।

एक तरफ़ जहां इस कोरोना महामारी में पाकिस्तान के लगभग 40 फ़ीसदी भूभाग पर क़ाबिज़ मात्र 6 फ़ीसदी आबादी वाले बलोचिस्तान के लिए किसी प्रलय से कम साबित नहीं हुई है। वही दूसरी तरफ़ इस संकट की घड़ी में पाकिस्तान की सेना व आई॰एस॰आई॰ ने पृथक बलोचिस्तान की माँग करने वाले बलोच विद्रोहियों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को चुन चुन कर निशाना बनाने में कोई कमी नहीं रख रही है। आज बलोचिस्तान में पाकिस्तान सेना व आई॰एस॰आई॰ द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर प्रायोजित “डेथ स्क्वॉड” का आतंक चरम पर है। “डेथ स्क्वॉड” विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने के लिए आई॰एस॰आई॰ का सरकारी मूक सहमती से अनाधिकृत रूप से गठित समूह है, जिसमें सेवानिवृत्त फ़ौजी व स्थानीय छोटे अपराधियों को मिला कर उनसे विद्रोहियों का अपहरण, हत्या यहाँ तक की पृथक बलोचिस्तान समर्थक राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं और उनके परिवारो पर हमले तक से नहीं चूकती है। 

वर्तमान समय में अपने अधिकारो के लिये संघीय सरकार और फ़ौज से लड़ रहे बलोचिस्तान के लिये कोरोना दूसरी बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है। कोरोना से अत्यधिक प्रभावित ईरान से लगती लम्बी खुली सीमा व वहाँ से क़ानूनी व गैरक़ानूनी रूप से सक्रिय आवाजाही भी बलोचिस्तान प्रांत के लिये बड़ा ख़तरा साबित हो रही है। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान में सबसे पहला कोरोना ग्रसित मरीज़ व शुरुआती अन्य मरीज़ भी ईरान से आये बताये जा रहे हैं। इन सब के बावजूद ईरान से लगती बलोचिस्तान की सीमा व सड़क मार्ग सील करने में देर की गयी।यह पाकिस्तान का बलोचिस्तान व स्थानीय लोगों की सुरक्षा के प्रति उसका रवैया ज़ाहिर करता है। गौरतलब है कि गत 11 मई को ईरान से आवागमन व्यापार तथा वहाँ से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए इतना ख़तरा होने के बावजूद फिर से खोल दिया गया है। प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार, पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी के सांसद मोहम्मद उस्मान खान काकर ने पाकिस्तानी ससंद में बलूच लोगों के साथ होने वाले भेदभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि अधिकारियों ने बलोचिस्तान के साथ दोयम व्यवहार किया है।बलोचिस्तान को एक भी वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं कराया है ना ही उपयुक्त संख्या में टेस्ट किट दिये गये है। एक और जहां पाकिस्तान प्रतिदिन 20 हज़ार टेस्ट का दावा कर लगभग साढ़े चार लाख से अधिक टेस्ट कर चुका है तो जबकि सच्चाई यह है कि बलोचिस्तान में अब तक मात्र 10 हजार से कुछ ज़्यादा ही टेस्ट हुए हैं। इसमें भी चिंताजनक बात यह कि किये गए टेस्ट में लगभग 50 प्रतिशत व्यक्ति पॉज़िटिव यानी कोरोना ग्रसित पाये गये हैं, जो साफ़ तौर पर वहाँ इस वायरस के फ़ेलाव की भयावह तस्वीर दिखा रहे हैं। बलोचिस्तान के दूर दराज वाले ख़ासतौर पर ईरान सीमा से सटे हुए इलाक़ों में अगर सही तरह से टेस्ट किए जाये तो चौंकाने वाले आँकड़े सामने आ सकते हैं। अधिकतर ग्रामीण इलाक़ों में अचानक से बढ़ी मृत्युदर भी यही इशारे करती है।

बलोचिस्तान प्रांत की सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवानी तक ने अपनी बेबसी को प्रेस में बताया कि संघीय सरकार ने उन्हें 50 हजार टेस्ट किट प्रदान करने के लिए कहा था। लेकिन, हमें पूरी शिपमेंट नहीं मिली और मात्र 14 हजार परीक्षण किट ही मिल पाये हैं जो नाकाफ़ी है। बलोचिस्तान के वितमंत्री के अलावा कई स्थानीय कर्मचारी भी इस वायरस के चपेट में आ चुके हैं। स्थानीय समाचार पत्रों के अनुसार शुरुआती दिनों में तो टेस्ट के नतीजों के मिलने में भी 10 से 15 दिन का वक्त लग रहा था। पी॰पी॰ई॰ किट की माँग करने वाले स्थानीय चिकित्साकर्मियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेलों में ठूँस कर मारपीट और उन्हें प्रताड़ित वाला भी पाकिस्तान वर्तमान परिस्थितियों में एक मात्र ही देश होगा।

बलूचिस्तान में, वास्तव में, लॉकडाउन समय का उपयोग लोगों का इलाज करने और रोगियों को ठीक करने के लिए नहीं, बल्कि वहाँ अपनी आज़ादी की माँग कर रहे पृथकवादी नेताओं, संगठनों और पत्रकारों को लक्षित कर उन्हें ठिकाने लगाने में ही किया जा रहा है। इस दो तरफ़े हमले को कमजोर बलोचिस्तान प्रांत ज़्यादा समय तक नहीं झेल पाएगा।

आज पूरे विश्व के सामने आ चुके बलोचिस्तान के इन हालातों को नज़रंदाज़ करना मानवता से मुँह फेर लेने के समान है। डबल्यू॰एच॰ओ॰, यू॰एन॰, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं को आगे आकर बलोचिस्तान व बलोच लोगों को बर्बादी की गर्त में जाने से बचाने के लिये आगे आना ही चाहिए। भारत को भी सार्क देशों के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा बलोच लोगों के साथ हो रहे दोयम व्यवहार को उठाना चाहिये।

       –   आजाद सिंह राठौड़

(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं और ‘कारगिल : द हाईट ऑफ ब्रेवरी’ जैसी चर्चित पुस्तक के रचनाकार है।)