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संकटकाल में सैन्य वेतन में कटौती अनावश्यक – आजाद सिंह राठौड़

महंगाई भत्ता या डीयरनेस अलॉउंस अथवा डी॰ए॰ भारत में सरकारी कर्मचारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों और पेंशनरों को दी जाने वाली तनख़्वाह व पेन्शन पर मुद्रास्फीति और बढ़ती महंगाई पर आधारित गणना पर दिया जाने वाला अतिरिक्त भत्ता है जिसे हर माह कर्मचारी को तनख़्वाह के साथ दिया जाता है।
महंगाई भत्ते की गणना लोगों पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करने के लिए मूल वेतन के प्रतिशत के रूप में की जाती है।
कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव से सबंधित सभी बुरी खबरों के बीच, केंद्र सरकार के पास सरकारी कर्मचारियों के लिए कुछ अच्छी खबरें थीं। केंद्र सरकार ने महंगाई भत्ते (डी.ए) में चार प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा के तहत 13 मार्च, 2020 को DA को 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 21 प्रतिशत कर दिया गया है। यह निर्णय 1 जनवरी, 2020 से प्रभावी माना गया था। इस आदेश को केंद्र सरकार के अधीन आने वाले कर्मचारीयों में बड़े उत्साह के साथ देखा गया व प्रतिक्रिया स्वरूप यह आदेश उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने वाला रहा।
इस घोषणा का स्वागत इससे जुड़े सभी कर्मचारियों में हुआ वहीं भारतीय सेना व अर्धसैनिक बलो के जवानों और अधिकारियों में इसे लेकर काफ़ी ख़ुशी व्यक्त की गई । परंतु यह ख़ुशी के पल उनके लिये अधिक समय तक नहीं रह पाये और कोरोना काल में होने वाली कटोतियों की सबसे पहली गाज से हमारे सैनिक व अर्धसैनिक बल भी बच नहीं पाये।

हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हमारे अन्य केंद्रीय कर्मचारियों व सेना में कार्यरत हमारे जवानो व अधिकारियों के कार्य व सेवा में प्रतिदिन आने वाली जोखिम भरी परिस्थितियों में बहुत बड़ा अंतर है। वर्तमान परिदृश्य में एक ओर जहां हमारे एक बड़े कर्मचारी वर्ग को कार्यस्थल पर आने की पाबंदी के साथ घर पर ही रहने के आदेश जारी है तो दूसरी और हमारा जांबाज़ फ़ौजी सियाचिन से लेकर दक्षिणी नेवल बेस, थार के वीरान रेगिस्तान से लेकर नागालैंड के घने जंगलो में उतनी ही मुस्तैदी से सजग प्रहरी के रूप में तैनात हैं । सेना और अर्धसैन्य बलों का यह तबका एक तरफ़ कोरोना जैसी घातक बीमारी से खुद को व अपने साथियों को बचाने के अतिरिक्त जोखिम से लड़ते हैं वहीं दूसरी तरफ़ आतंकवादियों व घुसपेठियों से भी लगातार लड़ते हुए उनके हर नापाक मंसूबों को परास्त करने में लगा है। एक ओर जहां चाहते हुए भी हमारी फ़ौज कोरोना से बचने के सारे उपाय को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल नहीं कर पा रही जैसे सभी के लिये अलग भोजन बनाने की बजाय आज भी मेस में ही खाना पकाना एक मजबूरी है तो बॉर्डर पट्रोलिंग या ऑपरेशन पर जाने के लिये किसी फिजीकल डिस्टेंसनसिंग के लिये अधिक वाहन ले जाना या हर वक्त हथियार या वायरलेस सेट को साफ़ करते रहना या किसी बंकर में अपने साथी से दूरी बना बैठना न तो मुमकिन है, और ऐसा किया जाना किसी अन्य गम्भीर ख़तरे को आमन्त्रित करने जैसा है। नतीजा कुछ अर्धसैनीक बलों के जवानो में कोविड से ग्रसित होना भी सामने आया है। वहीं दूसरी ओर देश में कोविड-19 के इस काल में भी अलग अलग जगह पर घटित हुई कई आतंकी घटनाओं व काउंटर इनसरजेंसी ऑपरेशन में बड़ी संख्या में हमने हमारे वीर जांबाजों को खोया है। जम्मू कश्मीर से लेकर नक्सल प्रभावित राज्यों से लगातार किसी मुठभेड़ या हमले के समाचार आ रहे है। हाल ही हमने कर्नल जैसे बड़े पद के अधिकारी और मेजर को आतंकियों से लड़ते खोया है। इन विषम परिस्थितियों में दो तरफ़ा हमला, आतंकवाद व महामारी को झेल रही फ़ौज के लिये वेतन में कटोती उनके लिये निस्संदेह हतोत्साहित करने वाली ही है।

20 अप्रैल को, केंद्र सरकार ने COVID -19 से उत्पन्न संकट के मद्देनजर सेवानिवृत्त केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए जनवरी 2020 से महंगाई भत्ते के संवितरण को रद्द करने का निर्णय लिया। इससे केंद्र सरकार के अधीन आने वाले हमारे तीनों रक्षा सेवाओं के एयरमैन, सैनिकों, नाविकों और सेवानिवृत्त सेनानीयों और उनके परिवार जो पेंशन लेते हैं, सरकार के इस फैसले का खामियाजा भुगतेंगे। महंगाई भत्ते के फ्रीज़ हो जाने से लगभग 1,500,000 सेवारत पुरुष और महिलाएं – सेना में, 1,265,000, नौसेना में 83,500 और वायु सेना में कार्यरत 155,000 प्रभावित होंगे। जबकि सभी रक्षा कर्मचारी पहले ही बिना किसी आदेश के, स्वप्रेरणा से
राष्ट्र के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए PM-CARES फंड में एक दिन के वेतन का योगदान दे चुके है। वेतन और पेंशन पर महंगाई भत्ते की यह रोक प्रवेश स्तर के सैनिक, नाविक या एयरमैन के लिए भी एक वर्ष में लगभग 15,000 रुपये से 20,000 रुपये से वंचित रखेगी। अधिकारी या 10 वर्ष से अधिक सेवा में रह चुके जवान के लिये सालाना लगभग 70 हज़ार से 1 लाख तक की रक़म से वंचित होंगे। हमारी अनुशासित फ़ौज के जवानों और अधिकारियों में इस फैसले को लेकर एक निराशा ज़रूर है पर उन्हें उनके “हर आदेश की पालना” और “परिवार से पहले देश” जैसे ध्येय वाक्यों से डिगा नहीं सकती। फ़ौज में किसी भी आदेश के ख़िलाफ़त करना तो दूर उस बारे में कोई बात सोचना तक नहीं सिखाया जाता है और इसे हर जांबाज़ फ़ौजी इसकी अक्षरशः पालना भी करता है।

वर्तमान सरकार के वेतन में कटोती के इस आदेश पर जाने माने अर्थशास्त्री व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा कि सशस्त्र बलों के भत्तों पर रोक आवश्यक नहीं है। उन्होंने वर्तमान सरकार से रोक के आदेश वापस लेने पर पुनर्विचार करने को भी कहा है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी डीए मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कोविड-19 का क़हर ताश की वह बाज़ी है जिसमें कब हमें हमारे तुरुप के इक्के का इस्तेमाल करना पड़ जाये जो निश्चित तौर पर हमारी फ़ौज ही होगी जिसने आज से पहले भी कई बार हमारे देश को प्राकृतिक विपदाओं से बाहर निकाला है, वह भी तब जब हमारा सिविल महकमा उतना कारगर सिद्ध नहीं हो पाया। गौरतलब है कि हमारे ईरान और अन्य देशों में रहने वाले नागरिकों को जब वहाँ स्थितियां ख़राब हो जाने के कारण स्वदेश लाना पड़ा तो उनके लिये क्‍वॉरन्‌टीन्‌ बेस बनाकर उनके स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी फ़ौज को ही दी गयी है। राजस्थान के जोधपुर व जैसलमेर में अज्ञात सामरिक अड्डों पर कोविड अस्पताल बना यह व्यवस्था की गयी। इस वैश्विक महामारी के क़हर से काफ़ी हद तक भारत बचा हुआ है और ठीक हालात में है। परंतु हमें स्मरण रखना चाहिए कि तेज़ी से उभरते हुए नये नायकों के इस दौर में हमें हमारे आज़ाद भारत के पहले दिन से ही असली नायक की तरह माने गये, हमारे शस्त्र बल के जवानो को आर्थिक कारणों या किसी बीमारी का हवाला देकर वेतन कटौती करना तो नैतिक आधार पर भी सही नहीं। वर्तमान सरकार को यह सनद रहे कि यह वही फ़ौज है जिसने पाकिस्तान की कारगुज़ारी के ख़िलाफ़ सरकार के आदेश पर पिछले लोक सभा चुनावों से ठीक पहले पाकिस्तान की अक़्ल ठिकाने लगा चुनाव से एनवक्त पहले कई सवालों से घिरने से इस सरकार को बचाया था। आज इस कठिन घड़ी में हमें हमारी दोहरी मार झेल रही फ़ौज के साथ सरकार को खड़ा दिखना ही होगा, ना कि उसे वेतन कटोती की तीसरी हतोत्साहित करने वाली मार झेलने को मजबूर करना। वर्तमान केंद्र सरकार को फ़ौज और अर्ध सैनिक बलों की वेतन कटौती के आदेश पर पुनर्विचार करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा में लगे हुए इस महत्वपूर्ण तबके को रियायत के बारे में अनिवार्यता से सोचना चाहिए।

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आजाद सिंह राठौड़

( लेखक रक्षा और विदेश मामलों के जानकार हैं)