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बलोचिस्तान: दमन की पराकाष्ठा का प्रतीक, समस्या के समाधान के लिए पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई जरूरी – र

सदियों से फारसी साम्राज्य और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच के क्षेत्र को बलोच लोगों की मातृभूमि के रूप में जाना जाता है। इसने हजारों साल तक बोलन दर्रे से भारतीय उपमहाद्वीप की तरफ जाने वाले आक्रांताओं के आतंक को झेलकर अपनी अलहदा संस्कृति को अक्षु्ण्ण बनाए रखा। भौगोलिक रूप से इसमें रेगिस्तान, शुष्क पर्वत श्रृंखलाएं, पठारी भूमि और अरब सागर की लंबी तटीय रेखा शामिल है।
वर्तमान दक्षिणी और दक्षिणी पश्चिमी अफगानिस्तान, दक्षिणी पूर्वी ईरान और पाकिस्तान के पश्चिमी के भाग इस का हिस्सा थे। इस क्षेत्र को 14 वीं शताब्दी में प्रथम बलोच स्थापित राज्य कलात नाम से जाने जाना लगा, जिसे बलोच लोग आज ग्रेटर बलोचिस्तान भी कहते हैंं। चारों ओर से मजबूत राष्ट्रों से घिरा होने और बाद में क्षेत्र में राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण यह तीन अलग-अलग देशों में बंट गया। ब्रिटिश काल में विभिन्न संधियों के तहत इसके कुछ हिस्से अफगानिस्तान तो कुछ हिस्से ईरान में शामिल कर लिए गए। कलात राज्य के शेष बचे हिस्से को ब्रिटिश साम्राज्य ने स्वतंत्रत देश का दर्जा देकर विभिन्न संधियों के माध्यम से संबंध कायम रखा।
इस तरह ब्रिटिश काल से ही स्वतंत्र राज्य और पृथक देश का दर्जा प्राप्त था। शेष बचे हुए इस भू-भाग को आजादी के समय पाकिस्तान द्वारा अनाधिकृत रूप से शामिल कर लिया गया और इस तरह ना सिर्फ एक स्वतंत्र देश बल्कि ऐतिहासिक कलात राज्य का भी दुखदायी अंत हो गया। पाकिस्तान द्वारा 28 मार्च 1948 को अनाधिकृत रूप से कब्जा किए इस क्षेत्र को ही आज पाकिस्तान के एक प्रांत बलोचिस्तान नाम से जाना जाता है।

इस प्रांत का कुल क्षेत्रफल अब 3.5 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो पाकिस्तान के कुल भूमि का 44 फीसदी है। 2017 में की गई पाकिस्तान की जनगणना के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बलोचिस्तान प्रांत की आबादी 1.30 करोड़ के आसपास बताई गई है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का छह प्रतिशत से भी कम है। यह आंकड़े इंगित करते हैं कि बलोचिस्तान प्रांत पाकिस्तान की बहुत कम जनसंख्या मे लगभग आधी भूमि पर आबाद है।

विभाजन की त्रासदी और बलूचिस्तान
14 अगस्त 1947 में पाकिस्तान देश का उदय हुआ, जो दुनिया में अपने वादे पर खरा नहीं उतरा। इसकी विदेश नीति तब से लेकर आज तक विश्वासघात और संधियों से यू-टर्न के लिए जानी जाती है। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनने के मात्र आठ माह के भीतर ही कलात से किए अपने समझौते से पलटते हुए 28 मार्च 1948 को कलात में अपनी सेना भेज उसके शासकों को बंदी बना पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में लेकर पाकिस्तान में विलय कर लिया।

इस तरह से पाकिस्तान ने ऐतिहासिक कलात राज्य का भी अंत कर बलोच लोगों पर निरंतर चलने वाले दमन की भी शुरुआत कर दी, जो आज अपने चरम पर है। उस समय से बलोच लोगों की पाकिस्तान के इस अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ जंग शुरू हुई जो पिछले 70 सालो से अनवरत चालू है।

पाकिस्तान द्वारा जुल्मों और दमन से आजादी हासिल करने के इन प्रयासों में राजनीतिक संघर्ष व सशस्त्र विद्रोह के लंबे दौर चले। इसी कारण कई बार बलोचों ने पाकिस्तान के तथाकथित लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर आवा उठाने की असफल कोशिश की तो कई मर्तबा उनकी बंदूकों ने पाकिस्तान के प्रति उनकी नापसंदगी, नफरत और पीड़ा का प्रतिनिधित्व किया।

सेना के काफिलों पर घात लगाकर हमला करने, सरकारी इमारतों पर बमबारी करने, गोरिल्ला युद्ध की मदद से समानांतर सरकार चलाने, पुलिस के ठिकानों को नष्ट करने, गैस पाइपलाइनों को नष्ट करने और यहां तक कि अपने स्वतंत्रता सेनानियों की मदद से लंबे समय तक एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने की कई घटनाएं हुई।

बलोचियों द्वारा पिछले 70 सालों में पाकिस्तान के खिलाफ प्रमुख स्वतंत्रता आंदोलनों, मजबूत प्रतिरोध और सहस्त्र सघर्षों को एक साथ देखें तो 1948 में पहला सशस्त्र प्रतिरोध, 1955 में राजनीतिक घटनाक्रम, 1958, 1962, 1973 का सशस्त्र प्रतिरोध, 2004 का विद्रोह और 2006 में अकबर बुगती की हत्या के समय यह अपने चरम पर रहा।

बलोच संघर्ष की इन घड़ियों में कई मर्तबा पाकिस्तान बलोचों के आगे बेबस, लाचार और घुटने टेकता नजर आया, पर साधनों की कमी और विद्रोहियों के आपसी सामंजस्य की कमी के कारण सफलता के इतने नजदीक आ जाने के बावजूद पाकिस्तान ने इन संघर्षों को पाकिस्तानी फौज को विदेशों से मिले अत्याधुनिक हथियारों की सहायता से और अपने सैन्य बल को घातक से घातक हथियारों के प्रयोग की छूट देकर बलोच विद्रोहियों का दमन करता रहा है।

साल 1973 के संघर्ष के दौरान तो पाकिस्तान ने अपने फाइटर प्लेन और ईरान से मिले हथियारबंद चिनूक हेलिकॉप्टर व मिसाइलों तक का प्रयोग किया था। बताया जाता है कि उस 1973 के एक संघर्ष मे ही लगभग 5000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों और 2000 विद्रोहियों को अपनी जान गंंवानी पड़ी थी। इसके बाद 2006 में नवाब अकबर बुगती की पाकिस्तान फ़ौज द्वारा हत्या के बाद भी कुछ इसी तरह के हालात सामने आए थे। आज पृथक बलोचिस्तान की मांग करने वाले विभिन्न नामों से कई संगठन लगातार राजनीतिक पटल पर और हथियारों के बल पर अपना संघर्ष जारी रखा है।


आज बलोचिस्तान के हालात
आज बलोचिस्तान पिछले 7 दशक से न्याय के लिए तरस रहा है। पाकिस्तान सामाजिक, आर्थिक और भौतिक व सभी संभव तरीकों से बलोच लोगों पर अत्याचार कर रहा है। संघीय और राज्य सरकार की कई एजेंसियां इस उत्पीड़न मे प्रत्यक्ष तौर पर शामिल हैं। पाकिस्तान सरकार बलोच लोगों के बुनियादी विकास, उसके बुनियादी मौलिक अधिकारों और मांगों को दबाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है। दूसरी और बलोच लगातार अपनी आजादी के लिये संघर्ष कर रहा है।

बलोच के लिए आज इस आजादी का अर्थ है- गरीबी और अत्याचार से मुक्ति, पाकिस्तानी पंजाबियों द्वारा किए जा रहे जुल्मों से मुक्ति, पाकिस्तानी की पहचान से मुक्ति, अपने क्षेत्र बलोचिस्तान की आजादी। आज बलोचिस्तान सबसे बुरे समय का सामना कर रहा है और अपने बलोच रीति रिवाज, संस्कृति और अपनी पहचान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।

सबसे निराशाजनक पहलू है बलोचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन की संख्या में निरंतर वृद्धि। असंख्य बलोच नेताओं, छात्रों और कार्यकर्ताओं को विभिन्न अभियानों में पाकिस्तान की सेना ने बेरहमी से मार डाला।

आज पाकिस्तान द्वारा अपने खिलाफ उठ रही हर आवाज को दबाने में और बलोच लोगों के मौलिक अधिकारों को कुचलने के प्रयासों के दौरान बलोचिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई हैं, जब राजनीतिक नेताओं, प्रमुख कारोबारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं का अपहरण कर लिया गया और बाद में उन्हें मृत पाया गया। जो गायब हो गए हैं उनमें से कुछ को फिर से नहीं देखा गया है, जो छूट कर आये उन्होंने अत्याचारो की रोंगटे खड़े कर देनी वाली दास्तान बयान की।

पाकिस्तान-बलोचिस्तान संबंध इतनी बुरी तरह से प्रभावित क्यों हैं? धार्मिक आधार पर बना पाकिस्तान उसी धर्म को मानने वाले बलोचों को अपने में समाहित क्यों नहीं रख पा रहा और सौहार्दपूर्ण संबंध क्यों नहीं बनाए रख पा रहा है? इन सब सवालों का जवाब पाकिस्तान के राजनीतिक नेताओं, नौकरशाही और सेना के निरंकुश व्यवहार और बलोच लोगों प्रति उनके दिमाग़ मे भरी दुर्भावना व नफरत है। विशेष रूप से वो राजनेता व अधिकारी को पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र से है।

बलोच लोगों को हेय और घृणा के भाव से देखते है। कहने को तो पाकिस्तान को तो एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप मे बनाया गया था, परंतु उसमें रहने वाले सभी मुस्लिम अलग-अलग मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के है जो सांस्कृतिक और भोगोलिक रूप से व भिन्न भिन्न रीति रिवाजों के कारण एक दूसरे से अलग-अलग है। उनका धर्म एक है परंतु भाषाओं, रीति-रिवाजों, शिष्टाचार, पहनावा, कला, अर्थव्यवस्था से अलग-अलग दृष्टिकोण के लोग है। यही कारण है कि एक धर्म के नाम पर बने देश पाकिस्तान में लगातार अलग सिंध, बलोच, पख्तून देश की मांग उठती रही है।

इस समस्या से बचने के लिये पाकिस्तान को अपनी संघीय प्रणाली को अधिकतम क्षेत्रीय स्वायत्तता के साथ स्थापित करना आवश्यक था। परंतु इसके उलट पंजाबी राजनीतिक, प्रशसनिक और सैन्य अभिजात वर्ग पाकिस्तान को पिछले 70 वर्षों के दौरान सत्ता के केंद्र को बजाय विकेंद्रित करने के उसे पंजाबी पाकिस्तान रूप मे केंद्रीकृत करने में कामयाब रहे। बलोच लोगों को उनकी शक्तियों और उनके अधिकारो को दरकिनार कर और उनकी उपेक्षा करना उन्हें पाकिस्तान के प्रति विद्रोही और गैर-विश्वासी बनाये रखने का भी यही मुख्य कारण है।

बलोचिस्तान के लिए निर्णय लिए जाने वाले अधिकार अभी भी उन तत्वों के हाथों में है जो मूल रूप से बलोच विरोधी हैं। बलोचिस्तान की कानून व्यवस्था और शासन अप्रत्यक्ष रूप से सेना के ही हवाले है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने भी हमेशा एक कमजोर मुख्यमंत्री और कमजोर गठबंधन सरकार का समर्थन किया है, और इस तरह बलोचिस्तान के विकास के लिए एक सुसंगत रणनीति को कभी विकसित नहीं होने दिया। इसके अलावा, वे प्रो-इस्टैब्लिशमेंट उम्मीदवारों या मुस्लिम लीग, धार्मिक पार्टियों या उनके सहयोगियों से जुड़े लोगों का समर्थन करने के अपने प्रयासों में प्रांत में किसी भी चुनावी प्रक्रिया में भारी धांधली में शामिल रहते हैं। सरकारी एजेंसियां सरकार बनने के बाद पाकिस्तान की फौज के इशारों पर नाचती रही है।

वहां की राज्य सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इतना पंगु बना कर रखा है कि स्थानीय संस्था किसी भी कार्य करने मे असक्षम है क्योंकि उसे स्वतंत्रता के साथ कोई काम करने की अनुमति ही नहीं है। आज पाकिस्तानी सेना बलोचिस्तान राज्य में उत्पीड़न और दमन की पराकाष्ठा को पार कर रही है। पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद से इस प्रांत में कहर बरपा रहा है। अगस्त 2006 में राष्ट्रवादी बलोच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद से सेना का अत्याचार चरम पर है।

बलोचिस्तान को वहां के लोगों को पाकिस्तान की सेना के अत्याचारों के साये मे रखने के कई कारणो में से एक कारण पाकिस्तान के लिए बेहद अहम बलोचिस्तान की भौगोलिक परिस्थितियांं और इसमें पाए जाने वाले अकूत प्राकृतिक संसाधन भी है। बलोचिस्तान की वर्तमान स्थिति प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के मामले में बहुत समृद्ध है।

यह क्षेत्र पूरे विश्व मे खनिजों के विशाल भंडार पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के लिए जाना जाता है। बलोचिस्तान के लोग लगातार पाकिस्तान की संघीय सरकार की घोर लापरवाही और उदासीनता के शिकार रहे हैं। आज बलोचिस्तान जो राजस्व पाकिस्तान के लिए पैदा कर रहा है, उसकी तुलना में उसे कुछ भी नहीं मिल रहा।

यही कारण है कि बलोचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों के शोषण और प्रांत के विकास के लिए धन के अपर्याप्त आवंटन का मुद्दा बलोचिस्तान में अलगाव और आक्रोश की भावना में एक प्रमुख घटक है। आज बलोचिस्तान पाकिस्तान के लिए किसी खजाने से कम नहीं है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत नहीं है और उद्योग उत्पादन वर्तमान समय में सबसे कम है, पर्यटन उद्योग इन परिदृश्यों में लगभग गिर गया है। खनिज समृद्ध बलोचिस्तान न केवल पाकिस्तान के लिये रीढ़ की हड्डी का कार्य कर रहा, बल्कि पाकिस्तान के लोगों की दिन प्रतिदिन की आवश्यकता को भी पूरा करता है।

उदाहरण के लिए बलोचिस्तान में स्थित सुई गैस फ़ील्ड एक बड़ा गैस क्षेत्र है। पाकिस्तान एक भारी गैस खपत करने वाला देश है और लगभग 36 प्रतिशत पाकिस्तान की कुल ऊर्जा ज़रूरतें प्राकृतिक गैस से ही पूरी हो रही हैं जिसमें बलोचिस्तान का बहुत बड़ा सहयोग है। यहा स्थित ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान का सबसे बड़ा बंदरगाह है जिसे पाकिस्तान ने चीन को लम्बे समय के लिए लीज पर देकर चीन को बेच कर बहुत बड़ा राजस्व इकट्ठा किया है।

वर्तमान में बलोचिस्तान में राजस्व धन का प्रवाह चरम पर है परंतु साथ शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी क्षेत्रों में यह सबसे पीछे है। गरीबी और शैक्षिक पिछड़ापन यहाँ स्पष्ट रूप से देखा सकता है। बलोच लोगों की सबसे महत्वपूर्ण शिकायत यह रही है कि इन संसाधनों का केंद्र सरकार द्वारा प्रांत के विकास के लिये कोई संतोषजनक मुआवजे दिए बिना दोहन किया गया है।

पाकिस्तान ह्यूमन राइट्स कमिशन, यूनाइटेड नेशन ह्यूमन राइट्स कमिशन समेत विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने अत्याचार की पराकाष्ठा को विश्व पटल पर रखने का प्रयास किया है, पर पाकिस्तान मे अफगानिस्तान में तालिबान पर कार्रवाई से अमेरिका और सीपीईसी (चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर) के कारण चीन के प्रत्यक्ष हित समाहित होने के कारण इस के खिलाफ विश्व के देशों और यूनाइटेड नेशन सीधे तौर पर मजबूत कार्रवाई से बचता आया है।

कलात राज्य पर कब्जे को लेकर गत 70 सालो में हजारों बलोच मारे जा चुके है। हजारों बच्चों और महिलाओं का भविष्य गर्त में जा चुका है। पाकिस्तान ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट्स में वॉइस ऑफ बलोच मिसिंग पीपल के अब्दुल कादिर के हवाले से बताया गया है कि वर्तमान में लगभग 47 हजार बलोच गायब है जो बिना किसी मुकदमों के फौज, पुलिस की हिरासत में है या मार दिए गए हैं।

हाल ही मे 200 अज्ञात शवों को बलोचिस्तान के एक निर्जन स्थान पर पाया गया है जो इन रिपोर्ट्स की पुष्टि करते है। पूरे विश्व के सामने आ चुके बलोचिस्तान के इन हालातो को नजरअंदाज करना मानवता से मुंह फेर लेने के समान है। आज जब विश्व के हर राष्ट्र में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित है और वहां के नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयास हो रहे हैं ऐसे में किसी एक मुल्क या किसी एक प्रांत को इंसान की बुनियादी जरूरतों से वंचित रखा जाना अन्याय है।

ऐसा माना जाता है कि किसी भी जगह हो रहा अन्याय हर स्थान पर न्याय के लिए खतरा है। इसलिए विश्व के बड़े राष्ट्रों और संयुक्त राष्ट्र संघ को पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके मानवता और शांति का संदेश देना अतिआवश्यक हो गया है। अन्यथा आने वाली बलोच नस्लों को यह विश्व सवालों का जवाब नहीं दे पाएगा।

– आजाद सिंह राठौड़

( लेखक, रक्षा व विदेश नीति विश्लेषक )