Articles Details

news-details-img

वैश्विक महामारी से उपजे संकट के कारण महाशक्तियों के टकराहट की आशंका – आजाद सिंह राठौड़

सम्पूर्ण विश्व आज कोरोना नामक एक बड़ी समस्या से जूझ रहा है। पूरी दुनिया में लगभग डेढ़ लाख लोग अब तक इस भयंकर वैश्विक महामारी के काल का ग्रास बन चुके हैं। लगभग बीस लाख से अधिक लोगों में वायरस का संक्रमण हो चुका है। परंतु इस वैश्विक महामारी के बादल इतने गहरा जाने के बावजूद भी विश्व की दो सबसे बड़ी महाशक्तियाँ अमेरिका व चीन का व्यवहार बचकाना व ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रतीत हो रहा है। इनका यह व्यवहार समस्त मानव जाति को ख़तरे में डालने के लिए पर्याप्त है । दोनों राष्ट्रों के नेतृत्व द्वारा समय समय पर आरोप- प्रत्यारोप वाले बयानों ने इस मुसीबत की आग में घी का काम किया है।

विश्व को कोविड –19 महामारी के कारण , आने वाले समय में कई दुष्परिणाम सामने आने के आसार बनने लगे हैं। इसके नतीजे हमारी कल्पना से कई गुना अधिक भयावह हो सकते हैं। एक ओर जहां लाखों लोगों को यह महामारी अकाल मौत की तरफ ले जा रही है , हज़ारों हँसते खेलते परिवारों के तबाह होने की नौबत आन खड़ी है तो वही लाखों परिवारों के लिए आने वाले समय में रोज़ी रोटी का संकट मुँह उठाये खड़ा है। वही दूसरी ओर विश्व के दो बड़े राष्ट्रों के इस संकट की घड़ी में आमने-सामने खड़ा हो जाना भी दुनिया के बाकी राष्ट्रों के लिये चिंता का विषय बन गया है। इन दो महाशक्तियों , चीन व अमेरिका के पिछले कुछ दशकों से लगातार चले आ रहे मतभेद या मनभेद का इस तरह खुल कर सामने आना एक नए शीत युद्ध की शुरुआत की आशंका पैदा करता है जो कि  विश्व के अन्य देशों और उनके नागरिकों के लिए कम ख़तरनाक नहीं है।

कोविड-19 महामारी आने वाले समय में विश्व व्यवस्था को कई रूप में बदलने जा रही है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ को भी प्रभावित करती नज़र आ रहा है। विशेष रूप से यह कि चीन द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का इस्तेमाल जानकारीयों को छुपाने और महामारी के शुरुआती केंद्र होने से बनने वाली ग़लत छवि से बचाने के लिये किया जाने का प्रयास निस्संदेह ख़तरनाक है। यह एक महज़ संयोग ही था कि चीन मार्च माह में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहा था ( संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता क्रमवार स्थायी व अस्थायी सदस्य हर महीने करते हैं )। जब संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून ने मार्च में परिषद की अध्यक्षता संभाली थीतब उनसे पूछा गया था कि क्या चीन कोरोनो वायरस के आपातकाल पर चर्चा करने की योजना बना रहा है। तब उन्होंने कहा कि कोरोनो वायरस महामारी से घबराने की जरूरत नहीं है और बीजिंग अपनी अध्यक्षता के दौरान परिषद की स्थिति पर चर्चा करने की योजना नहीं बना रहा हैचीन का यह बयान निस्संदेह बेहद ग़ैर ज़िम्मेदाराना व सारे विश्व को भ्रमित करने वाला था। इस महामारी पर अमेरिका के अथक प्रयासों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में मार्च माह से अभी तक ( यह लेख लिखे जाने तक ) चर्चा ना होना अमेरिका ने स्वयं के लिए एक बड़ी हार के रूप में भी देखना शुरू कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प पहले ही विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ ) को आर्थिक सहयोग रोकने के बारे में बयान देकर उसे चीन द्वारा कोरोना वाइरस सम्बन्धी ग़लत जानकारी का आरोप लगा कर अपने सख़्त इरादे ज़ाहिर कर चुके  हैं। दोनो बड़े राष्ट्रों के इस कदर आमने सामने हो जाने से विश्व व्यापार संगठन सहित कई बहुपक्षीय संगठनों के टूटने का जोखिमव विश्व स्वास्थ संगठन जैसी संस्थाओ का कमजोर होने का ख़तरा वास्तविकता रूप में नज़र आने लगा है जिसकी क़ीमत विकासशील देशों को ही चुकानी पड़ेगी।

ऐसा कई मर्तबा हुआ है कि किसी प्राकृतिक आपदा ( हालाँकि कोविड-19 के प्राकृतिक होना भी संदेह के दायरे में है ) का उपयोग अक्सर बड़े राष्ट्र जीयो पोलिटिकल व डिप्लोमैटिक हितों को साधने में भी करते आये हैं। अमेरिका कोविड-19 का उपयोग भी चीन के ख़िलाफ़ कुछ इसी तरह करता नज़र आ रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इस आपदा के प्रथम चरण में इसे चाइना वाइरस नाम से प्रचारित कर चीन को विश्व के सामने एक अपराधी के रूप में पेश करने में कोई कमी नहीं रखना चाह रहे है। अमेरिकी प्रशासन व ख़ासतौर पर ट्रम्प के सबसे नज़दीक सहयोगी माइक पेंपियों लगातार अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में कोरोना वाइरस को वुहान वाइरस तक कह कर चीन से इसकी उत्पति व इसके बारे में जानकारियों को छुपाने का खुला आरोप लगाकर उसे क़सूरवार ठहरा चुके हैं और इसके साथ ही कोरोना वाइरस से जुड़ी जानकारियों को विश्व पटल पर रखने की माँग कर चीन को विश्व की नज़र में अपराधी बताकर शेष विश्व से अलग थलग करने के प्रयासों को कई बार दोहरा चुके हैं। वही दूसरी तरफ़ चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्तालिजियन झाओवायरस प्रकोप में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाने के लिए विशेष रूप से मुखर रहे हैं।

विगत 12 मार्च कोझाओ ने एक ट्वीट पोस्ट करते हुए कहा “यह अमेरिकी सेना ही हो सकती है जो वुहान में महामारी लाई है। उनके इस निराधार दावे पर व्यापक आलोचना के बावजूदझाओ वाशिंगटन को दोष देना जारी रखते हैं व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौन सहमति या उनकी शह पर उनका प्रशासन भी लगातार अमेरिका सैन्य बल के सदस्यों पर अक्टूबर 2019 में वुहान में हुए सैन्य खेलों के दौरान वायरस लाने का आरोप लगाते रहे हैं।

अमेरिका वर्तमान समय को चीन के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने का पूरा प्रयास कर रहा है। अमेरिका में कुछ माह बाद होने वाले चुनाव व ट्रम्प के येन-केन-प्रकारेण अमरीकी अवाम को चीन के ख़िलाफ़ लामबंद कर उसे चुनावी मुद्दे के रूप में भुनाने के प्रयास भी इसकी पृष्ठभूमि में एक बड़ा कारण नज़र आ रहा है। अमेरिका समेत विश्व के कई राष्ट्र उसके शह पर चीन से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आ रही गिरावट से मुआवजे का दावा करने के मामले में चीन के ख़िलाफ़ खड़े नज़र आ रहे हैं जिससे उसे बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार जी – 7 देश चार ट्रिलियन डालर के मूआवाजे की माँग चीन से कर सकते हैं । यदि ऐसा कोई दावा उसके ख़िलाफ़ दायर होता है तो चीन द्वारा किसी भी मुआवजे का भुगतान करने की उम्मीद तो नहीं है , उल्टा चीन अपनी मज़बूती का उपयोग इन राष्ट्रों के आर्थिक हितों को कुचलने में ही करेगा जिसकी क़ीमत अंततः विश्व के अन्य राष्ट्रों को भी भुगतनी होगी।

एक तरफ़ जहाँ अमेरिका चीन को इस वैश्विक समस्या का कारण साबित करना चाह रहा है तो दूसरी तरफ़ चीन अमेरिका पर पलटवार कर इस संकट को निपटने में अपने शासन मॉडल को विश्व सामने नज़ीर की तरह पेश करने के अवसर के रूप में देख रहा है। वह अपने विदेश मंत्रालय के नेतृत्व में चीन के प्रचारदुनिया भर के राजनयिकों और राज्य-नियंत्रित मीडिया द्वारा अपने सत्ताधारी मॉडल को लोकतांत्रिक प्रणाली से बेहतर बताने के अवसर का भरपुर उपयोग कर रहा है। 

एक तरफ़ चीन इस आपदा को अपने राजनयिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए मित्र देशों को चिकित्सा उपकरण आपूर्ति कर रहा है तो दूसरी तरफ़ चीन के कारण व्यापार में पिछड़ रहे यूरोपियन व अन्य पश्चिमी देश अमेरिका की शह पर स्वयं को चीनी व्यापारिक मॉडल से अलग करने की फ़िराक़ में है। कुछ दिन पहले ही जापान सरकार ने अपनी कंपनियों को चीन में अपनी निर्माण इकाइयों को हमेशा के लिये बंद करने के फ़ैसले के चलते 2.2 बिलियन डॉलर का मुआवज़ा आवंटन भी किया है। लगतार पिछले कुछ सालों से महाशक्तियों के चले आ रहे व्यापारिक युद्ध में अमेरिकी कंपनियों ने चीन से बाहर जाना पहले से ही शुरू कर दिया थाउनके बाहर निकलने की गति में बढ़ोतरी की पूरी सम्भावना है।

अमेरिका इन वर्तमान परिस्थितियों में अपनी पूरी ताक़त चीन पर ईरान की तर्ज़ पर व्यापारिक पाबंदियों को लगाने के प्रयास में जुटा है। साथ ही साथ राष्ट्रपति ट्रम्प ने 27 मार्च को संसद में एक ऐसे कानून पर हस्ताक्षर किए है जिसमें अमेरिका को दुनिया भर में राजनयिक रूप से ताइवानजिसे चीन अपने ही एक हिस्से के रूप में देखता है , का समर्थन करने और उन देशों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार देता है जो ताइवान के लोगों की सुरक्षा व अधिकारो के लिये ख़तरा हो। निस्संदेह इस क़ानून का निशाना चीन पर ही है। चीन भी इस खतरे को मानता है और इसके खिलाफ चेतावनी भी दे चुका है।

विगत दिनों अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तीन राष्ट्रों के साथ बने पुराने समूह कवाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉगजिसे क्वाड ग्रूप भी कहा जाता हैजिसमें ऑस्ट्रेलियाजापान समेत भारत भी महत्वपूर्ण सदस्य है की दो दौर की बैठकों का नेतृत्व किया है। यह सदैव देखा गया है कि अमेरिका ने दूसरे राष्ट्रों को अपने स्वार्थ सिद्ध करने में उपयोग कई मर्तबा किया है। क्वाड ग्रूप के साथ भी भी वर्तमान में कुछ ऐसा ही हुआ जब अमेरिका ने बड़ी चतुराई से इसमें तीन और नये राष्ट्र वियतनामसाउथ कोरीया व  न्यूज़ीलैंड को शामिल कर इसे एक तरह से चीन विरोधी संघ ही बना डाला। ग़ौरतलब है कि जापानवियतनामसाउथ कोरिया के सम्बंध चीन से बेहतर सम्बन्धों के लिये नहीं जाने जाते हैं और भारत के अलावा शेष दो राष्ट्र अमेरिका के निकटस्थ ही माने जाते हैं। इस तरह से इस समूह में चीन के ख़िलाफ़ पारित होने वाले प्रस्तावों में भारत का शामिल रहना उसकी मजबूरी बनी रहेगी। दूसरी तरफ़ चीन अपने राजनैयिको की लम्बी चौड़ी फ़ौज के साथ निरंतर अमेरिका विरोधी राष्ट्रों से सम्पर्क में रहकर उन्हें हर सम्भव सहायता पहुँचाकर अपने ख़ेमे में बनाये रखना चाह रहा है। इस महीने की शुरुआत मेंजब अमेरिका ने घोषणा की थी कि वह इटली सहित कई यूरोपीय संघ के देशों के यात्रियों के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर रहा हैतो चीन की सरकार ने घोषणा की , कि वह कोरोनो वायरस महामारी से जूझ रहे इन देशों में चिकित्सा दल और आपूर्ति भेजेगा। चीन ने ईरान और सर्बिया को भी मदद भेज अमेरिका की बादशाहत व दुनिया के रखवाले वाले तमग़े पर कई सवाल खड़े कर दिये।

ज़ाहिर है कि दुनिया के लिए यह अच्छा समय नहीं है और यह अमेरिका और चीन के बीच संबंधों के लिए भी अच्छा समय नहीं है। आज सम्पूर्ण विश्व के लिये बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि यह दोनों महाशक्तियाँ इस महामारी की आड़ में एक दूसरे पर प्रहारों को बंद कर मानवता पर मंडरा रहे ख़तरे से निपटने के लिये साझा प्रयास करे जिससे पूरे विश्व को खतरे से बचाया जा सके।

आज पूरे विश्व को कोरोना वायरस से निपटने में चीनी सहायता की आवश्यकता है। ख़ासतौर पर उसके चिकित्सा डेटा और अनुभवों को दूसरे देशों से साझा करना जारी रखना अत्यंत आवश्यक है। चीन चिकित्सा उपकरणों और डिस्पोजेबल वस्तुओं जैसे मास्क और सुरक्षात्मक सूट का भी बड़ा निर्यातक हैजो संक्रमित रोगियों और बचाव कार्य में लगे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। साथ ही साथ अमेरिका की विश्व के अधिकतर देशों को साथ लेकर चलने की क्षमता व आर्थिक शक्ति की भी इस महामारी से लड़ने में बड़ी भूमिका हो सकती हैज़रूरत है तो बस इतनी कि दोनो राष्ट्र आपसी मतभेद व मनभेद को कुछ समय के लिये दरकिनार कर इस समय विश्व कल्याण में अपनी शक्तियों का उपयोग करें । भारत को भी इस नाज़ुक घड़ी में दोनो में से किसी भी राष्ट्र को एकतरफ़ा समर्थन देने से बचते हुए विश्व के अन्य विकासशील व कम सक्षम राष्ट्रों के साथ अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ करउनसे मिलजुल कर इस महामारी से लड़ना चाहिये। परंतु भारत सरकार ने भी गत दिवस महामारी से प्रभावित हो कमजोर हो रही भारतीय कम्पनीयों में विदेशी निवेश के बढ़ने से रोकने के लिये एक आदेश जारी कर किसी विदेशी निवेश से पहले सरकारी अनुमति लेने का आदेश जारी किया हैपर इसमें सिर्फ़ “सीमा से लगने वाले देशों” का लिख कर सिर्फ़ चीन को ऐसा करने से रोकने व बाक़ी बड़े देशों के लिये अवसर को खुला रखना हमें इन महाशक्तियों की लड़ाई व उनकी अवसरवादी नीतियों का हिस्सा ही बना रहा है।

आज़ाद सिंह राठौड़

(लेखक विदेश व सामरिक मामलों के जानकार है तथा कारगिल द हाइट्स ऑफ ब्रेवरी जैसी चर्चित पुस्तक के लेखक हैं।)